RAKHI Saroj

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लेखनी प्रतियोगिता -17-Jan-2023

ख़ामोश आवाज

ख़ामोश हो‌ चली है आवाज 
अब सुनाई नहीं पड़ती है
खुद को ही खुद की बोली की
गुंज, पुकार रही है फिर भी जाने
कौन सा है वह रास्त जिसको ये 
कर वह अब कानों के पास आती 
नहीं है, निकलती है शायद अब 
कंठ से बाहर मेरे कामयाबी के रंग
बस अब नज़र आतें है खामोशी हो
चली है मेरी आवाज़ मेरे ही अपनों 
के कानों पर सुनाई देती नहीं है। 
         राखी सरोज 

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10 Comments

बेहतरीन बेहतरीन

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अदिति झा

08-Feb-2023 10:33 AM

Nice 👌

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Mahendra Bhatt

18-Jan-2023 09:17 AM

👌👏🙏🏻

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RAKHI Saroj

20-Jan-2023 03:22 AM

धन्यवाद

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